रे बादल,,
जब भी बरसते हो न तुम
संपूर्ण वेग के साथ ,
इस भीगते हुए शहर संग ,
मैं भी भीग जाती हूं पोर-पोर तक तक
अपने किसी एकांत में ,
और,,करती हूं इंतजार
हरियाली का
अपनी कविताओं में !!
सुनों..
जब-जब पढ़ोगे
इन बुद्धू सी कविताओं को,
स्मृतियों में जीवित रहेगी सदियों तक
"यह बारिश" ,
कि कभी भीगा था एक शहर
और..शहर में एक लड़की
नालायक सी,,है न !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश