जितने भी शब्द हो सकते थे
दुनिया के किसी भी शब्द-कोश में ,
तमाम लिपियों को समेटा और..
लिख दिया..मन का हाल
क्या तुमने पढ़ा,, नहीं न !!
जितनी भी भाषाएं हो सकती थी
मैंने सब में पुकारा
तुमने तब भी कहां सुना..
मैंने थककर
जब भी चुप रहना चाहा
तुमने प्रत्युत्तर देना चाहा सबका..
पूछ सकती हूं.. क्यों ??
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश