सारे गरम गरम व्यंजन
रखकर बीच में मां
चारों ओर वृत्ताकार थालियाँ सजाती
प्यार से दुलार से खाते बच्चे
लो और लो कहकर और परोसती मां
एक के बाद एक दीदी की हुई शादी
चली गईं वे
हमारी रसोई घर में
होता गया थालियों का वृत्त छोटा
अब हम सब
चाहे कई वृत्तों में घूमें
जब मिलते हैं कभी
टूटे बिखरे सारे वृत्त
एक होकर महावृत्त बनाते हैं
जिनके केंद्र में मां
उनके चारों ओर जुड़कर
हम सब उनकी यादों का
बड़े प्यार से रसास्वादन करते हुये
उसी रसोई में।
डॉ0 टी0 महादेवराव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)