इस नेता के सहारे यूपी में कांग्रेस कर सकती है करिश्मा, क्योंकि निर्विवाद एवं बेदाग छवि के साथ जुड़ेगा एक मजबूत वोट बैंक....
फतेहपुर। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत किसी से छुपी नहीं क्योंकि संगठन की स्थिति जग जाहिर है, ऐसे में कांग्रेस के आगे खुद में चुनौती अपने आप से ही है। अगर धरातल की राजनीति की बात करें तो कांग्रेस की छवि सुधारने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव के साथ ही उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाया गया था लेकिन यूपी में प्रियंका का खासा कोई प्रभाव नहीं दिखा और आखिरकार उन्होंने प्रदेश का प्रभार छोड़ दिया जिसके बाद कयास लगाया जा रहा है कि प्रियंका या तो लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर कैंपेन की जिम्मेदारी निभाएंगी तो दूसरी ओर उनको किसी सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ाया जा सकता है।
हांलाकी उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय एवं अन्य ने वाराणसी संसदीय सीट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आगे मैदान में प्रियंका गांधी को उतारने की वकालत की है तो कहीं से ये भी शिगूफा छोड़ा गया है कि इस बार के चुनाव में सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से मां को राजनीति से आराम दिलाते हुए स्वयं चुनाव लडने की घोषणा कर सकती हैं।
इतना ही नहीं कई राजनैतिक विश्लेषकों ने विश्लेषण में अवगत कराया है कि प्रियंका गांधी के लिए सबसे सेफ सीट चिकमंगलूर है क्योंकि इस सीट से उनकी दादी स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने भी जनप्रतिनिधित्व किया है, वैसे भी प्रियंका में इंदिरा की साफ झलक दक्षिण भारत में बखूबी चर्चा का बिंदु बना हुआ है।
बात करें अगर उत्तर प्रदेश की तो 1947 से लेकर 1989 के बीच कुछ वर्षों को छोड़कर लगभग चार दशक राज करने वाली पार्टी की आज स्थिति ये है कि बहुत से बूथों पर पार्टी का बस्ता तक लगाने वाला कोई नहीं दिखता है। इतना ही नहीं आज ये दल प्रदेश में मात्र एक लोकसभा सीट तक ही सिमटी है।
हालांकि प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश में प्रभारी बनने के बाद भी कोई खासा बदलाव न दिखाई देने पर उनके समर्थकों का कहना था कि यूपी में कांग्रेस काफी पहले से कमजोर हो गई थी ऐसे में महज तीन चार साल में उनसे चमत्कार की उम्मीद कैसे की जा सकती है लेकिन हकीकत ये भी है कि प्रियंका गांधी 1984 से अपने पिता स्वर्गीय राजीव गांधी के साथ अमेठी जाती रही हैं, भले ही सोनिया गांधी पूरे देश में प्रचार करने की वजह से वहां नहीं जा पाती हों लेकिन प्रियंका गांधी रायबरेली और अमेठी सीट के प्रचार में जरूर जाती थीं इसका मतलब कम से कम दो सीटों पर तो कांग्रेस को जीतना चाहिए था।
जब प्रियंका के प्रभारी रहते कांग्रेस अमेठी हार गई तो फिर उनके प्रभारी बने रहने का क्या तुक बनता था और ये निर्णय पहले ही हो जाना था कि प्रियंका गांधी को प्रदेश के प्रभार से मुक्त कर दिया जाता और देश के एक ऐसे घराने को सामने लाते जिसका नाम आज भी निर्विवाद एवं सम्मानजनक बना हुआ है।
वैसे कांग्रेस की स्थिति आज भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं दिख रही है क्योंकि बीते दिनों कई राज्यों के नतीजों ने कांग्रेस को निराशा के सिवाय कुछ नहीं दिया है। वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी की हार के साथ ही मध्य प्रदेश में भी करारी हार का मुंह देखना पड़ा पर तेलांगना में कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही है।
वहीं संगठन में फेर बदल के बाद उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की जगह पार्टी के वरिष्ठ नेता अविनाश पाण्डेय को प्रभारी बनाया गया है, हालांकि अविनाश पाण्डेय झारखण्ड के प्रभारी रहे हैं और इनके नेतृत्व में झारखंड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन में सरकार बनाने में सफल रही है।
लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत किसी और प्रदेश से बेहद भिन्न है क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा, सपा और बसपा के अलावा अन्य दलों का मजबूत संगठन भी बेहद सक्रिय व मजबूत है जहां कांग्रेस का संगठन नगण्य सा दिखाई दे रहा है ऐसे में संगठन को मजबूत बनाना और उसको सक्रिय करना बड़ी चुनौती होगी।
जानकारों का कहना है कि जब राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए और प्रियंका गांधी भी प्रभारी बनकर कुछ न कर सकीं तो अब बड़ा ही संकट पार्टी के सामने बना हुआ है जिसे कम समय में बना पाना लगभग असम्भव सा है। वैसे भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में धार्मिक कार्ड का विशेष खेल खेला जाना स्वाभाविक है जिसकी बानगी ये है कि योगी और मोदी की जोड़ी यूपी में मंदिर की राजनीति के इर्द-गिर्द काम कर रही है।
आगामी होने वाले लोकसभा चुनाव में अयोध्या के मंदिर की राजनीति साफ तौर से छाई रहेगी और कांग्रेस बीजेपी की इस हिंदू राजनीति का काट नहीं खोज पा रही है लेकिन ये भी सच है कि ये आज की चुनौती नहीं है बल्कि पिछले 20 साल से बरकरार है जिसे देख कर लगता है कि कांग्रेस ने मेहनत करना बंद कर दिया है। यही एक और कारण था कि जब प्रियंका गांधी को प्रदेश की प्रभारी बनाया गया था तो कांग्रेसी या ये भी कह सकते हैं कि कांग्रेस के समर्थकों में बदलाव की उम्मीद सी लग गई थी लेकिन सिर्फ निराशा के सिवाय कुछ नहीं मिला है।
ऐसे में बड़ा सवाल यही उठता दिखाई दे रहा है कि आखिरकार कांग्रेस का यूपी में वनवास काल कब और कैसे खत्म होगा? इस सवाल के चिंतन से एक बात समझ आई है कि उत्तर प्रदेश में किसान जाति की बराबरी किसी से नहीं है क्यूंकि किसान बाहुल्य देश व यूपी जैसे प्रदेश में आज भी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री को मानने वाले हैं इतना ही नहीं आज के इस दौर में जहां महात्मा गांधी - जवाहरलाल नेहरु जैसे विश्वविख्यात नेताओं पर तरह - तरह के आरोप - प्रत्यारोप सोशल मीडिया से लेकर कुछ दल एवं संगठनों के मंचों पर भी दिखाई देते हैं उसी श्रृंखला में आज भी किसी दल, संगठन एवं व्यक्ति विशेष में स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के विरुद्ध कोई बात नहीं दिखाई देती नजर आई है बल्कि उनके प्रति सभी का सम्मान ही नजर आता दिखाई देता है।
ऐसे में कांग्रेस पार्टी के पास बड़ा विकल्प है गांधी परिवार के बाद शास्त्री परिवार पर जिम्मेदारी देना क्योंकि इस शास्त्री परिवार की सहानुभूति हर किसान व जवान में साफ दिखती है क्योंकि स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री का दिया हुआ नारा "जय जवान, जय किसान" का आज तक कोई काट नहीं बन सका है। हालांकि प्रदेश में विभिन्न किसान संगठन बने हैं और उनके अपने नेता हैं लेकिन आज भी जो सम्मान स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री का है वो सम्मान की जगह किसी को नहीं मिल सकी है।
हालांकि ये सही है कि वर्तमान की राजनीति में शास्त्री परिवार के कुछ परिजन कांग्रेस के साथ हैं तो कुछ भाजपा के साथ भी हैं पर ये भी सही है कि किसी को भी कहीं पर विशेष तरजीह नहीं है। ऐसे में राजनीति में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में स्थापित करने के लिए शास्त्री परिवार को कमान सौंपनी चाहिए जिससे उम्मीद है कि पार्टी की छवि में बदलाव आएगा और इस बदलाव से नतीजों में भी बदलाव आना स्वाभाविक है।
कांग्रेस में स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के ज्येष्ठ पुत्र रहे स्वर्गीय हरिकृष्ण शास्त्री (पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री) के ज्येष्ठ पुत्र विभाकर शास्त्री भी पार्टी में बने हुए हैं हालांकि वो भी अपने स्वर्गीय पिता की लोकसभा सीट फतेहपुर से कई बार किस्मत आजमाएं पर कांग्रेस के धराशाई संगठन के चलते कोई नतीजा नहीं मिला और हार का मुंह देखते चले आएं।
आज कांग्रेस में ज्येष्ठ पौत्र होने के चलते अपने दादा स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के नक्शे कदम पर चलते हुए इस दौर में भी पार्टी के विजयश्री के लिए लगातार चिंतित रहते हुए विभाकर शास्त्री कार्य करते नजर आते हैं लेकिन पार्टी ऐसे दिग्गज घराने के नेताओं पर ध्यान नहीं दे रही है।
जिससे पार्टी का ही नुकसान है। जानकारों का मानना है कि यदि किसान नेता की छवि से स्थापित शास्त्री परिवार के इस दिग्गज नेता (विभाकर शास्त्री) को कांग्रेस उत्तर प्रदेश की कमान सौंपे तो निश्चित तौर से बदलाव होगा और पार्टी की छवि भी सुधरेगी। उत्तर प्रदेश में किसानों की तादाद ज्यादा मात्रा में है ऐसे में जहां भाजपा धर्म की राजनीति पर जोर देती है तो सपा - बसपा जाति पर राजनीति करती है जिसका काट किसान ही कर सकते हैं क्योंकि किसान तो हर धर्म - जाति में हैं जिससे संभव होगा की जय जवान - जय किसान का नारा देने वाले के परिजन के आह्वाहन पर फिर से लोग जुड़ेंगे और बदलाव करेंगे।
कांग्रेस को अधिकतर राजनीति के जानकार एवं विश्लेषकों का सुझाव यही रहा है कि कांग्रेस को कम से पांच साल की रणनीति बनानी होगी और उन लोगों को अहम जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए जिनमें जमीन पर मेहनत करने की क्षमता है। यदि इस रणनीति पर काम होगा तो हर वर्ग ऐसे किसान नेता के वंशजों के साथ जुड़कर कांग्रेस को मजबूती दिला सकता है।