नहीं चाहती कि
याद की जाऊं कभी
सिर्फ एक स्त्री की ही तरह,
क्योंकि आज तक
उसके हिस्से में आई हैं
सिर्फ और सिर्फ अश्रुपूरित कविताएं ही,
चाहती हूं कि
बची रह जाऊं
किसी अधूरी प्रेम-कविता में ,
या,,,होती रहूं शामिल
किसी प्रेमी-प्रेमिका के अथक इंतजार में ,
क्योंकि
इंतज़ार में ही निहित हैं
प्रेम की प्रबल संभावनाएं !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश