उड़ती चिड़िया से बोला एक दिन,
बगीचे में लगा आम का पेड़।
तनिक रुक जा ,आराम कर ले।
क्षण भर को रुक,मेरे आम चख ले।
विश्राम कर मेरी छाया में,
परों की थकान उतार ले।
ये सब सुन नन्ही चिड़िया बोली,
नही रुक सकती तुम्हारी छाया में,
नही चख सकती आमों की मिठास में ।
मुझे बच्चों के पास जाना हैं ।
उनकी नन्ही चोचों में दाना डालना हैं ।
सूरज की धूप, हवा से बातें करनी है ।
दूर क्षितिज से परों की होड़ लगानी है ।
मंजिल मिल जाने तक में रुक नही सकती,
आराम हराम है, मैं यह कर नही सकती।
ऐसा कहकर चिड़िया फुर्र से उडी
अपनी मंजिल की ओर. .....।
गरिमा राकेश 'गर्विता'
कोटा,राजस्थान