अगर सच में कहूं तो पकौड़ा तलना कोई लढ़ा ढकेलने से अधिक मुश्किल काम नहीं है, किंतु हमारे डिग्री बाबू के लिए पकौड़ा तलना भी एक चुनौती बनता जा रहा था। क्योंकि उन्होंने जीवन के 25 से 30 बरस डिग्री के पहाड़ को खड़ा करने में दिमाग का दही हो गया अतः एक दिन डिग्री के पहाड़ पर चढ़कर जोर से चिल्लाएंगे "तुम में भी मैं हूं" अर्थात माउंट एवरेस्ट को फतह कर खुद को विजेता घोषित करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ते फिर भी उनकी योग्यता इस बेरोजगारी के ठप्पे को नहीं मिटा सकी।
डिग्री बाबू को एक आवाज सुनाई देती है, "आओ पकौड़ा तले" डिग्री बाबू ने पास में जाकर देखा और और
डिग्री बाबू ने जा कर पूछा- यह तुम क्या बक रहे हो?
क्या मैं तुम्हारे साथ पकौड़े तलूं?
पकौड़े वाला - अरे नहीं साहब आप पकौड़े खाइए इन्हें मैं तलता हूं।
डिग्री बाबू - देखते ही देखते कुंभकरण हो गए
10 से 15 पकौड़े बैठे-बैठे यूहीं चट कर गए और कहा मेरा नाश्ता हो गया अब चलता हूं।
पकोड़े वाले - पकौड़े वाले आवाज लगाई आओ पकोड़े तलते हैं!
डिग्री बाबू - डिग्री बाबू ने फिर पूछा ये बार-बार क्यों कह रहे हो?
पकौड़े वाला- सब यहां तो मेरी आदत है। आप क्या करते हैं वैसे साहब?
डिग्री बाबू- मैं बी. ए. एम. ए. वेल एजुकेटेड हूं।
पकौड़े वाला- साहब आप करते क्या हैं?
डिग्री बाबू- मैं बेरोजगार हूं रोजगार की तलाश में।
पकोड़े वाला- इसीलिए तो कहता हूं आओ पकड़ा तले!
डिग्री बाबू-( अपना ताप बढ़ाते) क्या कहा तुमने अभी-अभी? अभी डिग्री बाबू की नजर अचानक से एक ठेले के पास दीवार पर नज़र पड़ती हैं नौकरी का विज्ञापन तुरंत संपर्क करें योग्यता बी.ए., एम. ए. डिग्री धारक जल्द करें आवेदन देर में करने पर झाड़ू लगाने का पद भी दिया जा सकता है। यह सब क्या लगा रखा है?
पकौड़े वाला- ये तो कुछ भी नहीं साहब कल तो मैं एक विज्ञापन देखा था के फैलाने की भैंस चरानी है पद की योग्यता बी. ए.पास थी।
पकौड़े वाला (तंज कसते हुए) साहब यह आप जैसे लोगों के काम नहीं हैं। डिग्री बाबू आज बी ए., एम ए. तथाकथित एचडी वाले भी चपरासी बनने को तरस रहे हैं।
पकौड़े वाले का यह तंज डिग्री बाबू के बेरोजगारी पर नमक छिड़क गया। डिग्री बाबू के दिमाग में बस एक सूत्र वाक्य घूम रहा था अपने दादा नाना का दिया हुआ आज उन्हें बहन हो रहा था "पढ़ोगे लिखोगे बनोगे खराब, खेलोगे कूदोगे बनोगे नवाब। वर्तमान की पीढ़ी ने इसको कंठस्थ कर लिया है आज स्वर्गीय सरकारी नौकरी से लेकर निजी नौकरी खून चूस नौकरियां में घुसिया फार्मूले को लोग फॉलो करते हुए अपने सामाजिक स्टेटस को मेंटेन कर रहे हैं, अभी पिछले दिवाली में हमारे शर्मा जी शरमाइन के लिए नौलखा हार गिफ्ट में दिया था, तब कहीं जाकर वर्मा जी के बेटे भोंदू की नौकरी फलाने सरकारी विभाग में लगी थी, उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वह गांधी सिद्धांतों में कम वह उन्हें व्यवहार में अधिक मानते हैं, डिग्री बाबू की आत्मा पतृप्त हो गई आज उन्होंने अपने पूर्वजों के सूत्र वाक्य को ही बदल डाला और उन्होंने कहा "पढ़ोगे लिखोगे बनोगे बे-रोजगार,
खेलोगे कूदोगे दोगे रोजगार"।
डिग्री बाबू ने एक पद के दो हजार दावेदारों में आवेदन कर यह साबित कर दिया कि वह सिद्धांत वादी अधिक व्यवहार वादी कम बोले तो एक दम गउ, डिग्रीधारक हैं।
कवि- कुमार प्रिंस रस्तोगी
लखनऊ