उत्कर्ष

ऊंचाई पर जाना,

माहौल अपने अनुसार बनाना,

अब आम बात हो गई है,

नैतिकता पूरी तरह सो गई है,

आज नैतिकता की बात

सिर्फ दुहाई देने के लिए है,

सुचिता की उम्मीद दूसरों से ही क्यों?

विश्वास और भरोसे को तोड़कर

सब कुछ हथिया लेना,

बदले में मनमानी की सौगात देना,

क्योंकि आम लोगों को

सबसे पहले जीना होता है,

सब कुछ खून पसीना होता है,

उन्हें उच्च स्तर की गुणा गणित से

दूर रखा जाता है,

जब तक पकड़ा न जाये

तब तक चोर भी

चरित्रवान नजर आता है,

इसलिए बड़े तरीके का खेल

समझ नहीं पाता है,

समझदार सपने दिखाते हैं,

फिर चालाकी से लूट मचाते हैं,

चरित्रहीन उपदेश फेंक रहे हैं,

लोगों को सपने बेच रहे हैं,

इस तरह से पाये जा रहे हैं उत्कर्ष,

अनजाने और दीवाने हो

जी रहे हैं सब जीवन संघर्ष।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग