कौन सा कल

कल की ही बात है। वैसे भी हमारे यहाँ बरसों बीत जाने पर भी ‘कल की ही बात है’ कहने का चलन अनंत काल से चला आ रहा है। हम अपने कल को कभी बासी नहीं पड़ने देते। हमारा कल हमेशा तरोताजा रहता है और रहेगा भी। विश्वास न हो तो तरोताजगी के बलात्कार, भ्रष्टाचार, अन्याय और क्रूरता की पावन खबरों से पटे अखबार के पन्नों या फिर गलाफाड़ प्रचार करते टीवी एंकरों को ही देख लें। हमारे यहाँ तारीखें बदलती हैं, घटनाएँ नहीं। यही तो हमारी तरोताजगी का सबसे बड़ा प्रमाण है।

हाँ तो मैं अपने कल की बात बता रहा था। पड़ोस की बहन ने मुझे राखी बांधी थी। औपचारिकता के तौर पर उसने मेरी आरती उतारी, मिठाई खिलाया। मैंने भी उपहार देकर अपनी जिम्मेदारी निभा दी। मैं उनके घर से जैसे ही निकलने वाला था कि मेरी नजर वहाँ पड़े समाचार पत्र पर पड़ी।

 बड़े-बड़े अक्षरों पर लिखा था शहर में गैंगरेप। पहले तो मैंने इस खबर की कड़े शब्दों में निंदा की जैसा कि हर नेता करता है। किंतु खबर की चीड़फाड़ करते समय मैंने अपनी असलियत व्यक्त करते हुए कहा, ये लड़कियाँ भी जब तक इस तरह के जींस, टी शर्ट और अंगदिखाऊ कपड़े पहनेंगी तब तक उनके साथ इसी तरह की घटनाएँ घटेंगी। थोड़ी देर पहले तक गैंगरेपियों को डाँटने वाला मैं, पीड़िता को डाँटने लगा। उस पर आरोप मढ़ने लगा।

मेरी यह सब बातें बहन ध्यान से सुन रही थी। उसने हँसते हुए कहा, आप तो पूरी तरह नेता जैसी बातें करने लगे हो। लगता है बहुत जल्द चुनाव लड़ने वाले हो। मैंने हँसते हुए कहा, ऐसी कोई बात नहीं है। वैसे ये सारी बातें उन लड़कियों के बारे में है, जो इस तरह के कपड़े पहनती हैं। 

तुम तो हरगिज ऐसी नहीं हो। तुम्हें देखकर जमाने को सीखना चाहिए। इतना कहते हुए मै बाहर निकल ही रहा था कि मुझे जींस पहनी रमा दिखायी दी। वह हमारे पड़ोस में रहती है। मैंने उसे देखकर उसके कपड़ों की तारीफ कर दी और कहा, तुम इन कपड़ों में खूब फबती हो। इतना कहते हुए मैं अपने घर लौट आया।   

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657