मंदाकिनी का हो शीतल फुहार
चलो भाग चलें गंगा के पार।
ना हो व्यंगवान ना हीं कोई कुटिल विचार,
निर्मल सरिता जल से ओतप्रोत हो अपना प्यार।
चलो भाग चलें गंगा के पार...
कल्पना रथ पर होकर सवार ,
चलो भाग चलें जमुना के पार।
कदम वृक्ष की छइयां में हो अपना संसार ,
कोलाहल से इतर पर्णकुटिर हो स्वपनिल व्यापार।
चलो भाग चलें जमुना के पार...
कल्लोलिनी हो प्रपात,
शैल हो उद्गम आधार ,
चलो भाग चलें झरने के पार ।
कल्पवृक्ष हो चारों ओर,
इर्ष्या ,दम्भ ना हो अंहकार ,
चलो भाग चलें झरने के पार।
डॉ.रीमा सिन्हा , लखनऊ