वैसे तो कोई अपनी कमाई से कितना अपने पास रखता है और कितना लोगों के बीच बांट देता है, यह पूरी तरह से उसका निजी निर्णय होता है, लेकिन जब कोई ऐसे विशिष्ट उपक्रम करता है जिसका लक्ष्य किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष की स्थिति की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करना हो तो इस तरह की उम्मीद करना नाहक नहीं कहलायेगा, कि इससे हुई कमाई का थोड़ा-बहुत हिस्सा उन लोगों तक पहुंचे, जिसे या जिन्हें केन्द्र में रखकर वह काम किया गया हो और उससे बड़ी आय या आर्थिक लाभ काम करने वाले को मिला हो।
इस बात का सन्दर्भ पिछले वर्ष विवेक अग्निहोत्री द्वारा कश्मीरी पंडितों के पलायन एवं उनकी तकलीफों पर बनाई गई फिल्म दी कश्मीर फाइल्स से जुड़ता है। बुधवार को बीते दिनों की सिने स्टार आशा पारेख द्वारा एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में दिये उस बयान से जुड़ता है, जिसमें उन्होंने पूछा कि इस फिल्म से अग्निहोत्री ने इतने पैसे कमा लिये पर उन्होंने कश्मीरी हिन्दुओं पर कितनी राशि खर्च की?
इस फिल्म के बारे में कहा जाता है कि उसकी लागत 15-20 करोड़ रुपये मात्र थी जबकि उसने 400 करोड़ रुपए का लाभ कमाया। दो फिल्मफेयर, पद्मश्री एवं दादासाहेब फालके पुरस्कारों से सम्मानित 81 वर्षीया अदाकारा ने कहा कि उन्होंने फिल्म नहीं देखी है इसलिये वे उसके विवादास्पद पहलुओं पर कुछ नहीं कहेंगी। यह पूछने पर कि क्या ऐसी फिल्में बननी चाहिये, उन्होंने कहा कि अगर लोग देखना चाहते हैं तो बनती रहें। निर्माताओं का हिस्सा 200 करोड़ रुपये का अनुमान लगाते हुए उन्होंने सवाल किया कि जम्मू-कश्मीर में हिन्दू बगैर बिजली-पानी के रह रहे हैं पर क्या निर्देशक ने अपने लाभ से कुछ उनकी मदद की?
यह फिल्म उसी समय विवाद में आ गई थी, जब माना गया था कि इसके निर्माण का उद्देश्य कश्मीरी पंडितों के खिलाफ आतंकवादियों का उत्पीड़न दिखलाते हुए हिन्दुओं की भावनाओं को भड़काना है जिससे भारतीय जनता पार्टी के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का एजेंडा सधता हो। इसमें फिल्म को आंशिक सफलता भी मिली थी लेकिन लोगों को यह खेल समझ में आ चुका है क्योंकि इस फिल्म का स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रचार करते नजर आये थे।
उन्होंने इस फिल्म की विशेष स्क्रीनिंग कराई और मंत्रियों व पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर इसे देखा था। इतना ही नहीं, उन्होंने लोगों से इसे देखने की अपील भी की थी। इसके बाद आई दी केरला स्टोरी का भी राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास भाजपा ने कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के पहले किया था। छोटे पर्दे के सीरियलों से अपना निर्देशकीय कैरियर बनाने वाले अग्निहोत्री को हिन्दुवादी राजनैतिक सोच वाला व्यक्ति माना जाता है जिनकी फिल्मों का उद्देश्य अब भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिये फिल्में बनाकर जन समर्थन हासिल जुटाना रह गया है।
इस फिल्म को नरगिस दत्त राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। यानी माना गया कि इस फिल्म से भारत की एकता मजबूत होती है। वास्तविकता तो यह है कि इसका उद्देश्य लोगों को जोड़ना नहीं वरन बांटना है। अग्निहोत्री की हाल ही में आई एक और मूवी दी वैक्सीन वॉर कोरोना के दौरान भारत की कोविड निरोधी टीके बनने की कहानी है जिसमें यह बतलाने की कोशिश है कि देश आज जो खुली सांसें ले रहा है वह इन्हीं वैक्सीनों के कारण है और फिल्म में अप्रत्यक्ष रूप से इसका पूरा श्रेय नरेन्द्र मोदी की कार्यप्रणाली व दृष्टिकोण को दिया गया है।
अग्निहोत्री किस तरह से इन भावनाओं के दोहन द्वारा आर्थिक लाभ कमाते हैं, उसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में एक अखबार ने प्रकाशित किया कि दी कश्मीर फाइल्स के माध्यम से विवेक एवं निर्माता के रूप में उनकी अभिनेत्री पत्नी पल्लवी जोशी ने मुंबई के वर्सोवा में करीब 20 करोड़ रुपये का एक लग्जरी अपार्टमेंट खरीदा है। कुछ समय बाद उनके अपनी पत्नी के साथ बैंकॉक की खर्चीली यात्रा की तस्वीरों ने भी सनसनी फैलाई थी।
लोगों ने तंज कसा था कि देश में हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा लगाकर ये लोग विदेश में मौज-मस्ती कर रहे हैं। पल्लवी ने ही फिल्म दी कश्मीर फाइल्स में नायिका की भूमिका निभाई थी। महंगे घर खरीदने या विदेशों की सैर करने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है और न होनी चाहिये। ऐसा वे सारे करते हैं जो इस तरह से पैसे कमाते हैं, लेकिन आशा पारेख का सवाल अपनी जगह पर खड़ा है और इसलिये जायज है कि वे ऐसी फिल्में बनाने वाले की मंशा और प्रयोजन पर सवालिया निशान लगाती हैं।
इस फिल्म को देखकर लोगों का कश्मीरी आतंकवादियों के बहाने मुस्लिमों के खिलाफ रोष बढ़ा था जो भाजपा के वोट बैंक को बढ़ाता है। आशा पारेख अत्यंत सम्मानित अभिनेत्री रही हैं जिनका बहुत सफल फिल्मी कैरियर रहा है और वे विवादों से हमेशा परे रही हैं। वे निर्विवाद रूप से हर मायने में एक सफल अदाकारा रही हैं जिन्हें जीवन में सब कुछ मिल चुका है जिन्हें कुछ और पाना नहीं बचता।
इसलिये उन पर यह आरोप नहीं लग सकता कि उन्होंने कुछ पाने के लिये ऐसा बयान दिया है या यह कोई उनका पब्लिसिटी स्टंट है। उन्हें अब अपना कोई प्रचार नहीं करना है क्योंकि शोहरत की बुलन्दियों को वे काफी पहले छूकर उतर चुकी हैं। इसलिये विवेक अग्निहोत्री को उनकी बात का जवाब देना चाहिये। इस देश ने डेन्नी बॉयल को भी देखा है जिन्होंने मुंबई की झोपड़पट्टियों में रहने वालों के जीवन पर बनी अपनी मूवी स्लमडॉग मिलेनियर को मिले आस्कर पुरस्कार की राशि का एक हिस्सा बाल कलाकारों को दिया था।