जी लिया जीवन जी भर के मैंने, अब मरने को थोड़ा समय चाहिए
जतन करते रहे दूसरों के लिए, मुझे भी कोई अब सुजन चाहिए
शाकी पिला दे मुझे जहर लाके ,चिर निदिया लेने का आनंद लूं
पी के हलाहल मांग यमराज से, छूटे मोह जग से बचन चाहिए l
लगन एसी लगी रग रग में बसी ,मोह लोभ के चक्कर में आकर फंसी
हुई अतिशय विकल खोई सब अकल, ग़म में डुबाया छीन सारी हंसी
चहुंओर छा रहे तमस के बादल ,काटें न कटे ये अंधियारी छटा
यमराज आगमन हुआ शंखनाद ,सांस अटकी और हिचकी में फंसी।
चल दिए छोड़ कर जरजोरू मकां ,हुए हाजिर यमराज के द्वार पर
खाता खोल कर प्रश्न मुझसे किया, क्या क्या किया अब तूं बता याद कर
गिन गिन गिनाया स्वयं तन से किया, शिक्षण किया बुराई की ना कभी
गुरू गरिमा निभाने के पुण्य से ,जन्म तुझको दिया अब श्रीमान घर ।
बालपन से होगी शुरू साधना , कर्मयोगी तय है बन जाएगा
होय कल्याणकारी तव भावना, दुखी की सेवा में सुख पाएगा
हो जग में प्रसिद्धि तेरे काम की, गुरु चरणों में रत तूं होगा मगन
कट जाएं तेरे पिछले दुष्करम, मृत्यु लोक से मुक्त हो जाएगा ।।
बच्चू लाल परमानंद दीक्षित
दबोहा भिण्ड /ग्वालियर
8349160755