पर्व त्यौहार को भूल चुके हैं हासिल करने जीवन का लक्ष्य ।
अब घर हम छोड़ चुके हैं सफल बनाने जीवन का पथ ।।
बेसक किस्मत के धनी नही हैं पर मेहनत में कमी नहीं।
कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प से दौड़ लगाने में कमी नहीं।।
बाबूजी का कठिन परिश्रम और उनके मेहनत का अंश ।
पाई पाई का रख रहा और झेल रहा सामाजिक बिसमता का दंश।।
याद मुझे वो मां का चूल्हा जिसमे पकती मुश्किल से दाल।
उस धुएं के अंदर घुटती और सफेद हो रहे मां के बाल।।
सफलता और संघर्ष कहानी कब लेगी एक सार्थक मोड़।
लगे पड़े हैं झेलने को अपने जीवन के हर मोड़ पर होड़।।
संघर्ष कहानी लिखते लिखते आंखों में आते अश्रु के बूंद।
क्या घिसना नियती बन बैठा खून पसीना वाली बूंद।।
जीवन के इस चौराहे खड़ा होकर कर रहा विचार।
भविष्य पड़ा अंधकार में बंद पड़े हैं चारो राह।।
फिर भी मन में दृढ़ संकल्प हासिल करना जरूर हीं लक्ष्य।
चाहे पथ में बाधा आए वेधना है वो सटीक लक्ष्य।।
श्री कमलेश झा भागलपुर बिहार