द्वार आए गणपति हमारे,
स्वागत कर दो मिलकर सारे।
द्वार आए गणपति ...
कर्ण तुम्हारे बहुत सुघड़ हैं,
गज-से लगते हैं प्यारे,
मैं छोटा भोला-सा बालक,
विनती लेकर आया हूं।
द्वार आए गणपति ...
जन्मदिवस आता है जब-भी,
हम-सब खुश हो जाते हैं,
एक नहीं ग्यारह दिनों तक,
मिलकर मौज उड़ाते हैं।
द्वार आए गणपति ....
भांति-भांति की गतिविधियों में,
दिन सारे कट जाते हैं,
मन में मेल नहीं होता है,
सब खुशियों से भर जाते हैं।
द्वार आए गणपति ...
बस मैं तुमसे पूछने आया,
क्यूं अकेले आते हो ?
रिद्धि-सिद्धि और भ्रात संग तुम,
तात-मात क्यूं नहीं लाते हो ?
द्वार आए गणपति ...
भूल गई दुनिया अब सारी,
परिवार संग सुख क्या होता ?
अर्थ में डूबे हैं सारे जन,
मुस्काना भी भूल गए।
द्वार आए गणपति ...
कद,मन मेरा इतना छोटा,
पर कितना कुछ सोच रहा,
सोच बदल दो परिवारों की,
मिलकर सब संग-साथ रहें।
द्वार आए गणपति ....
कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी 'राम'
117 सी स्पेशल गांधीनगर, इन्दौर,7869799232 (म.प्र.)