हिंदी हम जाने

लिखे पढ़े हिंदी हम जाने

शान देश की हम यह माने।

इससे ही है व्यक्तिव विकास

मृदुभाषी, मधुभाषी है काव्यसंसार।


गीत ग़ज़ल है यह कविता कुंज

राष्ट्रभाषा बनाने को देश क्यूं हुआ गूंग?

परदेश, विदेश, स्वदेश , प्रदेश

सभी जगह तो अब हुई यह विशेष।


दिल खोलकर प्रत्येक ने अपनाया है

प्रीत रीत विनीत हर तरह से गाया है।

सारी भाषाओं में सरल सुबोध न्यारी है

हमें तो हिन्दी सबसे प्यारी है।


हिंदुस्तानी होने का सम्मान दिलाती है

विद्वानों, ज्ञानियों को पहचान दिलाती है।

प्रेम - संस्कार, आदर है इसमें भरपूर।

कहते हैं निर्धन, धनी, सभी बड़े -बुजुर्ग।


_ वंदना अग्रवाल "निराली "

_ लखनऊ