हे ईश्वर,
तुम ही हो
सृजन की शक्ति
तुमसे सृजित है
विश्व,गगन और पृथ्वी।
हे परमेश्वर
क्या किसी और को
प्राप्त है शक्ति
तुमसे ही निकली है
सृजन और
शक्ति स्वरुपा स्त्री।
स्वयं मे पूर्ण
निर्मल नेह से
जग को सिचती
मांसल प्रेम मे प्राण भरती
जीवन भरती
सृजन करती स्त्री।
जन्म देती
अबोध शिशु को लेकिन
आदर्श नागरिक बनाती है स्त्री।
ईट गारो से बनी मकान को
गृह बनाती है स्त्री।
कच्चे अनाज
साग सब्जी को
स्वादिष्ट भोजन मे
बदल देती है स्त्री।
जीवन के हर मोड़ पर
सहनशीलता क्षमा
और करूणा
दया ममता और धैर्य
की प्रतिक है स्त्री।
हे पालनहार
तुमसे तुलना क्या स्त्री की
वह तो तुम्हारे
अद्वितीय अनुपम मनहर
सृजन की संसार है स्त्री।
लता तिवारी बाजपेयी 'पंखुडी'
लेखिका,लखनऊ-उत्तर प्रदेश
8299164573