बेचवापुर में फेंकूराम नाम का राजा शासन करता था। उसके गृहमंत्री का नाम भड़काऊलाल था। आए दिन गृहमंत्री अपने प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में राजा फेंकूराम की फेंकी हुई बातों को नापने निकल पड़ता था। इसी क्रम में एक बार वह पूर्वी प्रांत के बड़े राज्य में पहुँचा जहाँ राजा फेंकूराम की बातों से लबालब भरा हुआ तालाब मिला। तालाब के पानी में कमल खिले थे और अच्छे दिन के फिराक में दूसरे फूलों पर मंडराने वाले भौंरे यहाँ मंडरा रहे थे। किनारों पर सोशल मीडिया के पेड़ थे, जिन पर जुमले चहचहा रहे थे। गृहमंत्री वहाँ रुक गया। तालाब के पानी से हाथ-मुँह धोकर ऊपर मीडियाहाऊस पर गया। वहाँ अपने राजा फेंकूराम के फेंकी हुई बातों को इस तरह छोड़ने लगा कि मीडियाहाऊस वाले लपेटते-लपेटते थक गए। फेंकने और लपेटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था। गृहमंत्री ने मीडियाहाऊस को धमकाया और अच्छे से फेंकी हुई बातों को लपेटने का आदेश देते हुए बाहर आ गया।
बाहर आने पर गृहमंत्री ने देखा कि तालाब के किनारे उस राज्य की एक खूबसूरत कन्या तूडामैंपा (तू डाल-डाल मैं पात-पात) अपनी सहेलियों के साथ फेंकू तालाब में स्नान करने आई है। गृहमंत्री यह देख दंग रह गया। वह आगे बढ़ा। तूडामैंपा ने उसकी ओर देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। किंतु तूडामैंपा किसी अलग ही मिट्टी की बनी थी। उसने जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगा, अपनी सहेलियों के साथ चली गयी।
उसके जाने पर गृहमंत्री निराश हो गया। वह तूडामैंपा के साथ मिलकर अपने राजा फेंकू का नाम रौशन करना चाहता था। राजा फेंकूराम के पास आया और सब हाल सुनाकर बोला, मैं तूडामैंपा के बिना पूर्वी राज्य में आपके जुमलों का प्रचार-प्रसार नहीं कर सकता। पर मुझे न तो उसका स्वभाव मालूम है, न काम करने की स्टाइल। वह कैसे हमसे जुड़ेगी? राजा फेंकूराम ने कहा, भडकाऊलाल तुम इतना घबराओ मत। वह सब कुछ बता गयी है। गृहमंत्री ने पूछा, कैसे? राजा बोला, उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया तो उसने यह बताने का प्रयास किया कि हम जहाँ-जहाँ सिरताज हैं, वहाँ-वहाँ से पटककर हमारे कानों में फूल लगाएगी। दाँत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं जरूरत पड़ने पर किसी की भी डोर काट सकती हूँ। पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम तूडामैंपा (तू डाल-डाल मैं पात-पात) है और छाती से लगाकर उसने बताया कि मैं किसी के भी सीने पर मूँग दल सकती हूँ।
इतना सुनना था कि गृहमंत्री घबराने के बजाय खुशी से झूम उठा। बोला, इसका साथ मिल जाए तो पूर्वी राज्य को हम अंगुलियों पर नचा सकते हैं। दोनों वहाँ से चल दिये। घूमते-फिरते, जुमले फेंकते, दोनों कई दिनों बाद फिर से पूर्वी राज्य पहुँचे। तूडामैंपा के गाँव में रहने वाले अपने किसी परिचित के हाथों उससे मिलने का संदेशा भिजवाया। अगले दिन जब परिचित तूडामैंपा से मिला तो उसने गृहमंत्री का संदेशा उसे दे दिया। सुनते ही तूडामैंपा ने गुस्सा होकर हाथों में हल्दी लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, मेरे घर से निकल जा। परिचित ने वापस आकर सब हाल दोनों को कह सुनाया। गृहमंत्री हक्का-बक्का रह गया। तब राजा फेंकूराम ने कहा, भड़काऊलाल! हमें यहाँ से चले जाना चाहिए। उसके इशारों को समझो। उसने दसों अंगुलियाँ हल्दी में मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि हम अपना बोरिया-बिस्तर लपेटे और यहाँ से चले जाएँ। वरना वह हमारी हालत मार-मारकर पीला कर देगी।
उसी रास्ते जा रहे एक संन्यासी को दोनों की बातें सुनाई दी। उसने सलाह देते हुए कहा, राजा फेंकू जी! अकेली कन्या जब सब छोड़-छाड़कर किसी के पीछे पड़ जाती है, तो समझ जाना चाहिए कि वह तूडामैंपा है। अब तक आप समझते रहे कि आप से लोहा लेने का साहस किसी के पास नहीं है। किंतु तूडामैंपा आपकी चालों को कॉपी-पेस्ट करते हुए आपकी स्टाइल में आपको जवाब दे रही है। इसीलिए भलाई इसी में है कि आप यहाँ से प्रस्थान करें और अपना बचा-खुचा राजपाट देख लें। वरना लेने के देने पड़ जायेंगे। यह सुन दोनों वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो गए।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657