रक्षा का पर्व अनूठा ये, है पर्व श्रावणी को वन्दन।
कच्चे धागों से जुड़ता है, यह सच्चे धागों का बन्धन।।
संस्कृति का यह स्वर्णिम पन्ना, इतिहास, पुराणों की गाथा।
जितना इसको जानें-समझें श्रद्धा से नत होता माथा।
यह नेह समेटे धागों में, यह राष्ट्र पर्व रक्षाबंधन।।
कच्चे धागों से जुड़ता है...
बलि जैसा राजा महाबली, इस बन्धन को ना तोड़ सका।
इसकी मर्यादा के निमित्त, जो नारायण को छोड़ सका।
कुछ दाने लेकर के अक्षत और थाल सजा रोली-चन्दन।।
कच्चे धागों से जुड़ता है...
उस अग्निसुता पांचाली का, जब संकट में सम्मान पड़ा।
अपनों ने ही आंखें मूंदी और मार्ग न जान पड़ा।
तब कच्चे धागे की खातिर, दौड़े माधव सुनकर क्रन्दन।।
कच्चे धागों से जुड़ता है...
समरसता का यह पर्व सुखद, उल्लास-पिटारी लाता है।
पावन मन के सम्बन्धों का, अक्षय अनुबंध कराता है।
आओ मिलकर के करें सभी पावन उत्सव का अभिनन्दन।।
कच्चे धागों से जुड़ता है, यह सच्चे धागों का बन्धन।।
©® डॉ0 श्वेता सिंह गौर, हरदोई