चाहे कितना भी मैं मन बहला लूँ,
चाहे कितनी भी कविताएं रच डालूँ,
मन का कोना सदैव अतृप्त रह जाता है,
माँ तेरे बिना...
चाहे खुद से खुद को समझा लूँ,
मृत्यु अटल सत्य है यह स्वयं को बतला दूँ,
दिल का दर्द कभी कम न हो पाता है,
माँ तेरे बिना...
चाहे पावस की सुंदरता निहारूँ,
चाहे बादलों में आकृतियां बना लूँ,
लुक छिप अंजन बरस ही जाता है,
माँ तेरे बिना...
चाहे कोयल की कूक पर नाचूँ,
चाहे पपीहे की पीहू-पीहू पर झूमूँ,
मन तुम्हारे मृदु बोल को तरस ही जाता है,
माँ तेरे बिना...
डॉ. रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश