हम पहुंचे हैं चांद पर अब क्षितिज के पार जाना
जायजा ले के चांद तल का क्षितिज में भी झांक आना
अंत:मन में जिज्ञासा पनपी क्या रखा उस ओर जानूं
पथ क्षितिज प्राचीर कैसा युग कल्प अब छोर पाना।
नि:सीमता विकराल सिन्धु की कुपित लहरों का उमड़ना
हिम आच्छादित पर्वत चोटी श्रंखलाओं पर पहुंचना
आस का लघु दीप लेकर क्षितिज पर झंडा लगाना
पथ क्षितिज प्राचीर कैसा युग कल्प अब छोर पाना।
धरनि तल अलका है विस्मित निरभ्र नभ चंदा सितारे
सप्ताश्व रथमारूढ़ दिनकर प्रकटता मयूख प्रसारे
अदृश्य अद्भुत मौन जो शक्ति करतबी पल-पल दिखाना
पथ क्षितिज प्राचीर कैसा युग कल्प अब छोर पाना।
प्रथम चांद पर पहुंच भारत हौसले के गगन पर है
ललक भास्कर को छू सके ये ठानता हिन्दुस्तान है
विश्व गुरु बनने का सपना शौर्य वीरता से पाना।
पथ क्षितिज प्राचीर कैसा युग कल्प अब छोर पाना।
डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।