जम्मू-कश्मीर राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रशासन अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीरी इलाकों के करीब लोगों को रिझाने के उपक्रम में इस प्रकार लगा हुआ है कि भारतीय पर्यटक अपनी निगाहों से कुछ गज के फासले पर ही उस कश्मीर का नजारा कर सकें जिसे पाकिस्तान ने हथियाया हुआ है। दरअसल दोनों कश्मीर के बीच में जो नदी बहती है उसे भारतीय ‘किशन गंगा’ और पाकिस्तानी ‘नीलम नदी’ कहते हैं। दोनों कश्मीरों को यह नदी बांटती है और कहीं-कहीं यह इस तरह बहती है कि इसके दोनों किनारों पर बसी बस्तियों के लोग अगर ऊंची बा-बुलन्द आवाज में भी बोल दें तो एक-दूसरे को सुन सकें।
ऐसा ही एक छोर कुपवाड़ा जिले के केरन गांव में पड़ता है। उत्तरी कश्मीर में बसा यह गांव पाक अधिकृत कश्मीर के बहुत करीब है। दस हजार की आबादी वाले इस गांव में भारतीय पर्यटकों की भारी भीड़ आकर्षित हो रही है और यहां होम स्टे व टैंट लगा कर पर्यटकों को ठहराने का व्यवस्था जोरों पर है। पर्यटकों को यह देख कर रोमांघ्चित होना स्वाभाविक है कि नदी के इस तरफ भारत है और उस तरफ पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर है। वे उस पार बने मकानों व वाहनों को आते-जाते साफ देख सकते हैं। नदी पार स्थित मस्जिद से जब अजान दी जाती है तो इस पार के लोग वक्त मिला लेते हैं और जब इस तरफ की मस्जिद में अजान होती है तो उस तरफ के लोग भी मस्जिद जाने लगते हैं। नियन्त्रण रेखा के इतने करीब रह कर दूसरे देश के दृश्य देखना वास्तव में रोमांचकारी तो होता ही है।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ऐसे पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। इसकी असल वजह यह है कि भारत-पाकिस्तान के बीच विगत 2021 से फौजी युद्ध विराम लागू है। अब नियन्त्रण रेखा के करीब गोलियां व बम आदि नहीं चलते जिसे देखते हुए प्रशासन ऐसे स्थान पर पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। पहले केवल सुरक्षा बलों के सैनिकों व स्थानीय निवासियों को ही ऐसे स्थानों पर जाने की छूट थी मगर युद्ध विराम के बाद प्रशासन ने ऐसे स्थानों को पर्यटन के लिए भी चुना है। यह तो हकीकत है कि दोनों तरफ के कश्मीरों में मूलतः कश्मीरी ही रहते हैं। हालांकि पाकिस्तान ने अपने कश्मीर की जनसंख्या में परिवर्तन किया है परन्तु इसके बावजूद दोनों तरफ के कश्मीरियों के रिश्तेदार एक- दूसरे के इलाकों में रहते हैं।
भारत सरकार ने नियन्त्रण रेखा के बहुत करीब पर्यटन को बढ़ावा देने का फैसला ऐसे समय में किया है जबकि भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों में चुनाव होने वाले हैं। हम जानते हैं कि भारत व पाकिस्तान की अन्दरूनी राजनीति इस तरह की है कि दोनों देशों की घटनाओं का एक-दूसरे की राजनीति पर असर पड़े बिना नहीं रहता। इसकी वजह यह है कि 75 साल पहले भारत को काट कर ही पाकिस्तान मजहब की बुनियाद पर बना और इस मुल्क के रहनुमाओं ने भारत विरोध को अपना ईमान बनाया।
इस विरोध में हिन्दू विरोध पाकिस्तान की तामीर होने की शर्त में ही समाहित रहा। अतः पाकिस्तानी सियासी पार्टियों की राजनीति के केन्द्र में भारत विरोध ही रहा जबकि दूसरी तरफ भारत में पाकिस्तान विरोध राजनीति के केन्द्र में कभी नहीं आया। हां थोड़ा असर तब देखने में आने लगा जब पहली बार इसने 1965 में भारत के खिलाफ पूरा फौजी युद्ध किया और मुंह की खाई। इसके बाद 1971 के युद्ध में तो भारत ने पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो टुकड़ों में बांट दिया।
इसके बाद 1989 से जब पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू किया और कश्मीर में घुसपैठ करानी शुरू की तो भारत ने चौकन्ना होकर काम करना शुरू किया परन्तु 1999 में पाक ने कारगिल युद्ध छेड़कर साफ कर दिया कि उसकी फितरत सिर्फ भारत के प्रति नफरत है और उसने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की मर्यादाओं को खुलकर लांघना शुरू किया। वरना पहले यह अलिखित सिद्धान्त था कि भारत में जब भी चुनाव होते थे तो पाकिस्तानी हुक्मरान कोई ऐसा काम नहीं करते थे।
जिससे भारत की अन्दरूनी राजनीति प्रभावित हो। भारत का तो यह विश्व विदित सिद्धान्त ही है कि वह किसी दूसरे देश की घरेलू राजनीति में दखल नहीं करता है। मगर हमने देखा कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले पाकिस्तान ने किस तरह पुलवामा कांड किया और भारतीय सैनिकों को शहीद किया। उससे पहले के वर्षों में वाजपेयी शासन के दौरान किस प्रकार अमरनाथ यात्रियों की भी हत्या की गई और ऐसा हमला बाद में भी करने की कोशिश की गई। हकीकत यह है कि पाकिस्तान की सियासी जमातों में कट्टरपंथी विचारधारा के लोग भरे पड़े हैं और वे चुनाव जीतने के लिए भारत के खिलाफ कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा करके लोगों के वोट हड़पने की कोशिश में रहते हैं। पाकिस्तान में भारत विरोध व हिन्दू विरोध की सियासत बहुत आसान है।
इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने पिछले 2018 के चुनाव इसी नारे के साथ जीते थे कि ‘बल्ला घुमाओ-भारत हराओ’। अतः जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ही हमें किशन गंगा नदी के किनारे ठहरे भारतीय पर्यटकों की सुरक्षा के भी चाक- चैबन्द इन्तजाम रखने होंगे। निश्चित रूप से कट्टरपंथी भारत में भी हैं और वे हर मजहब में हैं। इसलिए हमें अपने नागरिकों की सुरक्षा और देश हित को सर्वोपरि रखना होगा। पर्यटन के साथ-साथ सुरक्षा पर भी बराबर ध्यान देना होगा क्योंकि पाकिस्तान में हालत तो ऐसे हैं कि यहां की दहशतगर्द तंजीमें अब सीधे यहां की फौज को ही ललकारने लगी हैं।