सांसद में बिल से कानून बनने पर हुई लड़ाई - कानून बनने पर बात न्यायालय तक आई
पौराणिक कहावतों की सटीकता में आज के कानूनों नियमों विनियमों की सटीक भूमिका को रेखांकित करना समय की मांग - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत में पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया व्यवस्था एक बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज भारतीय संविधान के अनुसार चलती है और पूरे कानून नियम विनियम अधिनियम प्रक्रिया सबका बेस भी संविधान ही होता है।यदि किन्हीं कानून में कोई धारा या नियम इस दस्तावेज के किसी अनुच्छेद का उल्लंघन करता हैतो अनेक पिटीशन न्यायालय के द्वारा तक आ जाती है, जिसका अधिकार भी संविधान नें ही दिया है जो सबसे बड़ी खूबसूरती है। दूसरी ओर सोने पर सुहागा यह है कि यही कानून नियम विनियमन अधिनियम लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर राज्यसभा और लोकसभा में उच्च और निम्न सदन में ही पारित किए जाते हैं जो बेहद पारदर्शी प्रक्रिया से किया जाता है।
परंतु कई वर्षों से जनता देख रही है कि जैसे-जैसे सरकारें और परिस्थितियां बदलती रहती है वैसे-वैसे इन कानून में संशोधन भी किया जाता है और उसकी प्रक्रिया सांसद के दोनों सदनों में ही पास करते हैं, जो संख्या बल का गेम होता है। यानें जिस पार्टी का दोनों सदनोंमें संख्या बल अधिक होगा वह उन संशोधनों विधेयको नियमों विनियमों को पारित कर कानून बना देते हैं, जो सारे देश के लिए बाध्य हो जाते हैं। ठीक उसी तरह संविधान में संशोधन भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है जिसे उचित एक तिहाई, दो तिहाई इत्यादि नियमों से पारित किया जाता है जो संख्या बल का ही गेम होता है, मेरा मानना है कि इसी संख्या बल और अधिकार, पावर के आधार पर ही हमें बड़े बुजुर्गों द्वारा कहावत कही गई है ।
बता दें कि पहले विधेयक को चुनौती दी गई जिसकी लाठी उसी की भैंस! जिसका सटीक उदाहरण अभी कुछ माह पूर्ण सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसले के बाद नया अध्यादेश लाया गया और विपक्ष की जबरदस्तघेराबंदी एकता के बावजूद यह बिल दोनों सदनों में पारित होकर कानून बन गया। यानें सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले के बाद भी एक तरह से उस फैसले को पलट कर एक नया कानून बन गया है, जिसे अब दिनांक 25 अगस्त 2023 को माननीय उच्चतम न्यायालय में पेंडिंग विधायक को चुनौती देने वाली याचिका मेंसंशोधन कर अब कानून के खिलाफ चुनौती करने संशोधन की अनुमति कोर्ट ने दे दी है,क्योंकि केंद्र सरकार ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी।
बता दें कि पहले विधेयक को चुनौती दी गई थी अब उसका कानून बनने पर संशोधन कर कानून को चुनौती दी जाएगी। चूंकि संशोधन को उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमति दी गई है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, बड़े बुजुर्गों द्वारा कही कहावत जिसकी लाठी उसी की भैंस सटीक नजरआई,संसद में बिल से कानून बनने पर हुई लड़ाई, कानून बनने पर बात अब न्यायालय तक आई।
साथियों बात अगर हम बड़े बुजुर्गों की कहावत जिसकी लाठी उसी की भैंस के सटीक नज़र आने की करें तो,11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने अफसरों पर कंट्रोल का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था। साथ ही कहा कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे, लेकिन एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इस फैसले को बदल दिया और ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार राज्यपाल को दे दिया।विपक्ष के अनुसार विधायी शक्ति का दुरुपयोग और संघवाद के खिलाफ 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली अध्यादेश 2023 पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह केंद्र को राज्य की नौकरशाही पर नियंत्रित स्थापित करने का मौका देता है।
संसद में विपक्षी दलों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रस्तावित कानून के माध्यम से बदलना गलत है। विपक्ष के अनुसार यह विधायिका की शक्ति के दुरुपयोग के साथ संघवाद के खिलाफ है। इस अध्यादेश को 6 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना जरूरी था, हालांकि इस बिल की तुलना 19 मई के अध्यादेश से करें तो केंद्र सरकार ने इसमें कई अहम बदलाव किए हैं। राष्ट्रपति की सहमति के बाद यह विधेयक कानून बन गया है।
साथियों बात अगर हम पौराणिक कहावतो की सटीकता में आज के कानूनों नियमों की सटीक भूमिका की करें तो, संसद ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 को मंजूरी दी है, जिसे दिल्ली सेवा विधेयक भी कहा जाता है।इसके तहतउपराज्यपाल को सेवा मामलों पर व्यापक नियंत्रण का अधिकार दिया गया है।इससे पहले, शीर्ष अदालत ने केंद्र के 19 मई के अध्यादेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था,जिसने शहर की व्यवस्था से सेवाओं पर नियंत्रण छीन लिया था और दो सत्ता केंद्रों के बीच एक नया विवाद शुरू कर दिया था।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उस याचिका को संशोधित करने की अनुमति दे दी है, जिसमें उसने 19 मई के सेवा अध्यादेश की वैधता को चुनौती दी थी।साथियों बात अगर हम पूरे मामले को गहराई से जानने की करें तो, खींचतान की शुरुआत होती है मई 2015 से। जब केंद्र सरकार ने एक नोटिस जारी करके कहा कि अधिकारी अब मुख्यमंत्री नहीं, एलजी को रिपोर्ट करेंगे। दिल्लीसरकार को ट्रांसफर पोस्टिंग का भी अधिकार नहीं होगा।मामला हाईकोर्ट पहुंचा। वहां फैसला लेफ्टिनेंट गवर्नर के पक्ष में आया। राज्य के सीएम सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।कई फेज की सुनवाई के बाद 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया।
कोर्ट ने अफसरों पर कंट्रोल का अधिकार दिल्ली सरकार को देदिया साथ ही कहा कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे।केंद्र ने 19 मई को अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर अध्यादेश जारी किया था। अध्यादेश में उसने सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के उस फैसले को पलट दिया,जिसमें ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को मिला था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए कहा था कि संविधान का आर्टिकल 246(4) संसद को भारत के किसी भी हिस्से के लिए और किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है जो किसी राज्य में शामिल नहीं है। दिल्ली सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।
इस पर सीजेआई ने 17 जुलाई को कहा कि हम यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेजना चाहते हैं। फिर संविधान पीठ तय करेगी कि क्या केंद्र इस तरह संशोधन कर सकता है या नहीं?दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र की ओर से लाया गया अध्यादेश असंवैधानिक है। दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को रद्द करने और उस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी।
साथियों बात अगर हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नए बने कानून को गहराई से जानने की करें तो (अ) नियुक्तियां और तबादले एनसीसीएसए समिति करेगी।विधेयक में नए जोड़े गए प्रावधान के तहत अब एनसीसीएसएस समिति की सिफारिशों के अनुसार दिल्ली सरकार के बोर्डों और आयोगों में नियुक्तियां और तबादले करेंगे।
इस समिति में मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे और उसकी अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे।(ब) 3ए जो अध्यादेश का हिस्सा था, उसे विधेयक से हटा दिया गया है।अध्यादेश के सेक्शन-3-ए में कहा गया था कि किसी भी अदालत के किसी भी फैसले,आदेश या डिक्री में कुछ भी शामिल होने के बावजूद विधानसभा को सूची-2 की प्रविष्टि 41 में शामिल किसी भी मामले को छोड़कर आर्टिकल 239 के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पब्लिक ऑर्डर, जमीन और पुलिस के अलावा अन्य विषयों पर दिल्ली सरकार को अधिकार हैं।
नए कानूनी बदलाव से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सीधी अवहेलना नहीं हो इसलिए बिल में सेक्शन-3ए को हटाकर केन्द्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-239-एए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया है। यह केंद्र सरकार को नेशनलकैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी यानी एनसीसीसा बनाने का अधिकार देता है।केंद्रीय गृहमंत्री ने संसद में दिए गए बयान में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पैरा-164-सी का उल्लेख किया है। इसके अनुसार दिल्ली के बारे में लिस्ट-1 (केंद्र सूची) और लिस्ट-3 (समवर्ती सूची) के मामलों में केंद्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है।सरकार के अनुसार अनुच्छेद 239-एए के तहत लिस्ट-2 यानी राज्य सूची के मामलों में भी संसद कानून बना सकती है।
इस बारे में गृहमंत्री ने संविधान के अनुच्छेद-249 के तहत दिए गए अधिकारों का भी उल्लेख किया जिसके अनुसार राष्ट्रहित में राज्य सूचीमें भी संसद कानून बना सकती है।(क) प्रस्तावित विधेयक में सेक्शन 45-डी दिल्ली में अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्डों, आयोगों और वैधानिक निकायों के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित है। प्रस्तावों या मामलों से संबंधित आदेशों / निर्देशों को केंद्र सरकार को भेजने की अनिवार्यता वाले प्रावधान को हटा दिया गया है। (ड) पिछले अध्यादेश के तहत एनसीसीएसए को संसद और दिल्ली विधानसभा में सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत करना जरूरी था। हालांकि विधेयक इस अनिवार्यता को हटा देता है, जिससे रिपोर्ट को संसद और दिल्ली विधानसभा के समक्ष रखे जाने की जरूरत ही नहीं रहेगी।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बड़े बुजुर्गों द्वारा कही कहावत जिसकी लाठी उसी की भैंस सटीक नज़र आई सांसद में बिल से कानून बनने पर हुई लड़ाई - कानून बनने पर बात न्यायालय तक आई।पौराणिक कहावतों की सटीकता में आज के कानूनों नियमों विनियमों की सटीक भूमिका को रेखांकित करना समय की मांग हैं।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र