है कैसा न्याय ये
पहले करो अन्याय
शोषण, तिरस्कार
फिर बस सहानुभूति?
क्या इस से भर जाते हैं
ज़ख्म तन और मन के?
क्या इस से हो जाती है
भरपाई खोए सम्मान की?
कोई दुर्घटना हो या किसी की मौत
तो सहानुभूति
समझ भी
आती है पर करके अत्याचार
या तिरस्कार या शोषण
सहानुभूति?
लगती है चोट सी
एक धकोसला
एक खानापूर्ति
पूरे घटनाक्रम को ढांपने के लिए
कोई नशे में या गुरुर में
कर देता है इंसान पर मूत्र
फिर सहानुभूति के बोल
क्या उसके दर्द , उस दर्दनाक
एहसास को कम कर पाएंगे?
गैंग रेप फिर शोषण नग्न
घुमाना स्त्री को या निर्वस्त्र
फेंक देना सड़क पर
या गोद देना चाकू से उसका बदन
या कर टुकड़े टुकड़े फेंक देना लावारिस
इतनी अमानवीयता
इतना दुर्व्यवहार
इतना शोषण
फिर बस सहानुभूति??
कहाँ का चलन है ये
दर्द देकर उस पर
सहानुभूति का लेप लगाना
आज इंसानों को इज़्ज़त, सुकून,
चैन, शांति चाहिए
सिर उठाकर जीने का हक
न की बस खोखली
सहानुभूति......
जो चाबूक सी लगती है
अत्याचार पर न की कोई औषधि।।
...... मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा