मुझे मुस्कुराना पड़ा

बहुत रोना आ रहा था मुझे,

पर कनक कलेवर अल-सुबह को

हौले-हौले उनके हँसने पर

शब़नम की रदनपंक्तियाँ देख

मुझे मुस्कुराना पड़ा।

बहुत रोना आ रहा था मुझे,

पर मध्यदिवस शीतोष्ण अवधि को

शांत श्वेत सरोवर की गोद पर

बाल तरंगों की अठखेलियाँ देख

मुझे मुस्कुराना पड़ा।

बहुत रोना आ रहा था मुझे,

पर रजकण मिश्रित सिंदूरी शाम को

नीड़ लौटे परिन्दों के कलरव से

गूँजित हरित तरुडालियाँ देख

मुझे मुस्कुराना पड़ा।

@ टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

     घोटिया-बालोद(छत्तीसगढ़)

सम्पर्क : 9753269282.