रत्न गर्भिता भुवि भारत की, अर्हत साक्ष्य मगध शुचि धाम।
प्रान्त पुष्प हैं स्वर्ग धरा का, सप्त वीर बलिदानी नाम।।
एक बाद दूजा सुत गिरता, गोली यवनी करे अपान।
भारत माँ के नैन भींगते, नभ तिरंग शोभा अभिराम।।
मुक्ति मास एकादश दिव था,सचिवालय प्रियध्वज फहरान।
सात हुतात्मा योग साधते, आज ऋणी जन-गण बे-दाम।।
देवीपद नेतृत्व किये थे, आगे बढ़ दें केतु सु-तान।
तन धन था चौदह वर्षों का, हिमगिरि सम मन तप की ठाम।।
देखें गिरते निज नेता को, रामगो'विन लें रण का भार।
ग्यारहवीं के छात्र सु-धर्मी, अल्प न चित को दें विश्राम।।
रामानँद पढ़ते नौवीं में, परचम को दें गगन उँचान।
भुवि गिरते,राजेंद्र बनें छवि, बिजली गति शोभे घन-श्याम।।
जगपति के कर में ध्वज शोभे, सजग सतीश करें अगवान।
प्रतिपल केतन भाव जगाता, श्रेयस ले यौवन निहकाम।।
उच्च शिष्य थे उमाकांत जी, गुम्बद पर दें युगपथ साज।
सप्त शहादत सम्मुख झुकती, चरण धूलि चन्दन महताम।।
महताम -महत्त्व, साक्ष्य = शहादत,मगध=बिहार,
अर्हत =पूर्ण मनुष्य।
मीरा भारती,
पटना,बिहार।