जा रहा था पीकर मटकू
गांव के ही ठेके से,
चला नहीं जा रहा ठीक से
पांव थे फेंके फेंके से,
बिजली खंबे के पास थी बैठी
डरी सहमी सी एक लड़की,
लड़के चार उसे घूर रहे थे
थी उखड़ी सी और झिड़की,
नशेड़ी मटकू पास आकर बोला
कौन हो तुम अब बोलो,
कहां से आयी क्यों हो यहां पर
जल्दी से मुंह खोलो,
हूं अनाथ और भाग आयी हूं
अपने उस अनाथालय से,
नहीं सुरक्षित वहां थी मैं
दुख मेरे अब हिमालय से,
मटकू बोला कहां जाओगी
क्या जाना है संग मेरे,
जल्दी बताओ क्या कहती हो
बदमाश यहां बहुतेरे,
चल पड़ी मटकू संग लड़की
जा पहुंची उसके घर,
दरवाजा खुलते पत्नि से बोला
देख मैं लाया हूं बेटी, है कितनी सुंदर,
कह देंगे अब गांव वालों से
मुंह उठाये कुछ भी बोलते
हर दिन सुबहा और शाम,
ले आया हूं बेटी घर में
अब नहीं रहे हम बांझ।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छ ग