काल सामने आ जाए उससे भी लड़ सकता हूं
फौलादी चट्टानों से यदि कहीं सामना हो जाए
हनु मुष्टिका कर प्रहार मैं चूर चूर कर सकता हूं
तूफानों की लहरों में ,कश्ती निश्चिंत चलाता हूं
डरता नहीं मैं गोली से मैं नहीं बम से डरता हूं
मैं डरता हूं उन लोगों से जो अपना बन आघात करें
कुटिल हंसीके चतुर खिलाड़ी जो भोले बन बात करें
जिस थाली में खाना खाया उस थाली में ही छेदकरें
जिसने दिया बसेरा घर में उसके घर की ही लूट करें
दुश्मन अच्छे करें सामना जयचन्दों से डरता हूं
डरता नहीं मैं गोली से मैं नहीं बम से डरता हूं
जिस गजरे में महक नहीं उसका कौन बनेगा क्रेता
धर्म विहीन पैसों का लोलुप ही हो इनका विक्रेता
आराधक अपने प्रियतम का क्रेता और नहीं विक्रेता
नहीं समर्पण जिसके मन में उसका कोई नहीं प्रणेता
छद्म भेष प्रवचन कर रहे लुटेरों से मैं डरता हूं
डरता नहीं मैं गोली से मैं नहीं बम से डरता हूं
यह वीर सिपाही की गाथा युद्ध फतह कर बोला था
उसकी दुल्हन डोली में ,वह समरभूमि में बोला था
दुर्गम्य पहाड़ों के ऊपर ,दुश्मन चौकी पर बैठा था
ले कृपाण चल पड़ा वीर चौकी पर धावा बोला था
उस सतीत्व की महिमा का उद्घोष मंच से करता हूं
डरता नहीं मैं गोली से मैं नहीं बम से डरता हूं
कर वीर फतह फौजी आया सम्मान राष्ट्र से वह पाया
जागो जवान बनो फौजी सत्मार्ग युवा को बतलाया
अनुगामी बनो राम जैसे गृहत्याग असुर संहार किया
पढ़ लिख वीर बनो फौजी भारत माता ने सिखलाया
खाते पीते सोते जगते हरदम जयहिंद बोलता हूं
डरता नहीं मैं गोली से मैं नहीं बम से डरता हूं
बच्चू लाल परमानंद दीक्षित
ग्वालियर/8349160755