आँखें केवल देखने के लिए ही नहीं, धोखा खाने के लिए भी होती हैं। क्लाउडबस्टर सी आँखें भी फटती हैं, जरूरत है तो नमी की या फिर कमी की। नमी और कमी के बीच आँखें जुबान से भी ज्यादा बतियाने लगती हैं। रीटा का भी यही हाल है। आठ ग्रहों वाले सौरमंडल में, पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहाँ दो सौ से ज्यादा देश, सात हजार से ज्यादा द्वीप और लगभग सात अरब से अधिक इंसानी बुत रहते हैं। लेकिन रीटा को प्यार करने के लिए एक ऐसा बुत मिला जो धोखा देने के सिवाय कुछ नहीं जानता। भाई, इस धरती का गजब दस्तूर है। धोखा थोक में और प्यार फुटकर में मिलता है।
रीटा भावनाओं और उसकी सहेली मौनिका वास्तविकताओं में जीती हैं। इसलिए एक दुखी और दूजी खुश रहती है। भावनाओं में कविता और वास्तविकताओं में गणित का सिलेबस बसता है। दोनों का सिंपल लॉजिक है। कविता वन प्लस वन को ग्यारह और मैथ्स उसी को टू समझता है। एक फील और दूजा रियल से बना है। रीटा मौनिका के सामने हमेशा रोती और कहती - लड़के छूट और लड़कियाँ शर्मींदगी के लिए पैदा होते हैं। शाम के छः केवल लड़कियों के लिए बजते हैं लड़कों के लिए कुछ बजता ही नहीं।
वे तो केवल बजाने के लिए पैदा होते हैं। कभी किसी की फीलिंग बजा दी तो कभी किसी का कुछ। अंधेरा तो केवल लड़कियों के लिए होता है, लड़कों के लिए उजाला होता है।
मौनिका डेट पर जाने वाली मॉडर्न लड़की है। वह रोने-धोने और गिड़गिड़ाने जैसे कोर एलिमेंट से नहीं बनी है। बल्कि वह इसी एलिमेंट को एलिमिनेट करती है। वह रीटा को हमेशा समझाती है – इंसान धोखा तभी खाता है, जब धोखा खाने के लिए वह स्वयं आगे आता है। मिर्ची और धोखे का कुछ भी भरोसा नहीं। कभी भी कहीं भी डाली और दी जा सकती है। आँखें खोलकर सोने वाले आँखें बंद करके सोने वालों से कहीं ज्यादा खतरनाक होते हैं। सच तो यह है कि धोखा अंधविश्वास में होता है, विश्वास में नहीं।
लड़का और लड़की में ‘लड़क’ कॉमन है। इस कॉमन में कोई आ की मात्रा सा खड़ा हुआ तो कोई ई की मात्रा सी सिर झुकाए हुए है। उठा सिर जहाँ धोखा देने के लिए तो वहीं झुका सिर धोखा खाने के लिए तैयार रहता है। अब लड़की को भी लड़का सा दिखना होगा। चूल्हे में सुलगती आग केवल खाना पकाने के लिए नहीं होती। यही आग लड़की को लड़का बनाने के लिए भी होती है। जमाने की सोच से डरने वाले खुद की सोच नहीं बदल सकते। सोच जब शौच सा दुर्गंध देने लगे तो उसे निकाल बाहर करना चाहिए। लड़की बनकर लड़की दिखना लड़की की सबसे बड़ी भूल है। जब तक यह भूल होगी तब तक स्वतंत्रता बेइमानी लगेगी।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657