मन मोहन प्यारे, काज सँवारे, करता प्रेम अपार |
बरसाना जाते,माखन खाते,देते मन उपहार ||
सुत जसुदा नंदन, कुल रघुनन्दन,बजावे मधुर तान |
मेरे जगदीश्वर, प्रेमिल गिरधर, सबकी रखते शान ||
मोहन अविनाशी,घट -घट वासी, बैठे बरगद छाँव |
बरसाना जाते, रास रचाते, रहते गोकुल गाँव ||
जब मुरली बाजे, गैया भागे, सुन के मधुरम तान |
मन गिरधर नागर, गुण के सागर,रखते सबका मान ||
सुन मोहन प्यारे, मन तुम वारे, सुनती मुरली तान |
चोरी तुम करते, दुखड़ा हरते, गोपिन की तुम शान ||
सुन अंतर्यामी, जग के स्वामी, मेरे दीनानाथ |
नित राह निहारुँ, तुम्हें पुकारूँ, रख दो मुझ पर हाथ ||
लट घुँघराले, काम निराले, करते मेरे श्याम |
मन मोहन प्यारे, राह निहारे, नैन बसो निज धाम ||
जब बंशी बजती, होठों सजती, सुने सुरीला राग |
जब याद सताती, मन तड़पाती,बढ़ता है अनुराग ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश