देश में मेरे अब कैसे,
अमृत महोत्सव मनाऊं मैं,
बिक रहे संस्थान है सारे,
कैसे खुशी मनाऊं मैं,
बंद हो शिक्षा के मन्दिर,
कैसे बचपन को पढ़ाऊं मैं,
महंँगाई ने कमर तोड़ दी,
कैसे जीवन बिताऊं मैं,
कैसे अमृत महोत्सव मनाऊं मैं.....
शिक्षा महंगी स्वास्थ्य महंगा,
किस किस पर दोष लगाऊं मैं,
गैस तेल सब महंँगे हो गए,
ये बात किसे बतलाऊं मैं,
रोटी पर टैक्स लगा दिया,
कैसे परिवार चलाऊं मैं,
दिखता है अंधियारा जीवन में,
उजाला कहांँ से लाऊं मैं,
कैसे अमृत महोत्सव मनाऊं मैं......….
किया था वादा देश से,
कालाधन वापस लाने का,
युवाओं को रोजगार दे,
बेरोजगारी मिटाने का,
रूपये का मान बढ़ा कर,
डालर तक पहुंचाने का,
अब क्या हो रहा देश में,
किस को याद दिलाऊं मैं,
कैसे अमृत महोत्सव मनाऊं मैं.........
हिन्दु मुस्लिम की यहाँ अब,
मुहिम चलाई जाती है,
टी वी पर हर रोज़ यहाँ,
डिबेट करवाईं जाती है,
नफ़रतों का बाज़ार गर्म कर,
नफ़रतें फैलाई जाती हैं,
क्या इन सब के लिए,
उनका आभार जताऊं मैं,
कैसे अमृत महोत्सव मनाऊं मैं......
भूखमरी गरीबी से बढ़ रही,
अमीर-गरीब की खाई है,
कुछ पूंँजिपतियों को,
देश की सम्पत्ति थमाई है,
मर रहा कर्ज के बोझ तले,
किसान-मजदूर मेरा,
क्या इन सबके दर्द का,
अब जश्न मनाऊं मैं,
कैसे अमृत महोत्सव मनाऊं मैं.....
वीरों ने दी थी कुर्बानी,
आजादी हम सबको दिलवाई थी,
देकर जान अपनी शहीदों ने,
विदेशी कम्पनियाँ भगाई थी,
उन वीरों ने कब सोचा था,
देश की सत्ता देश को ऐसे बेचेंगी,
क्या अब पूंँजिपतियों की,
गुलामी के गीत गाऊं मैं,
कैसे अमृत महोत्सव मनाऊं मैं..…
स्वरचित एवं मौलिक रचना
रामेश्वर दास भांन
करनाल हरियाणा