मैं बच्चा हूँ अभी बच्चा ही रहना चाहता हूँ।
धूल मिट्टी से लिपट नित खेलना चाहता हूँ।
उम्र बढ़ती और घटती जायेगी इस जहां में,
किन्तु मैं बचपना खोना अभी नहीं चाहता हूँ।
पाँव नन्हें है मेरे पर तीव्र दौड़ना जानता हूँ।
बार बार गिरकर मैं स्वयं सँभलना जानता हूँ।
वयस्त खेलने में इतना भूख ना कुछ प्यास है,
मार खाऊंगा माँ के हाथों यह भी जानता हूँ।
माँ मगर मैं तेरे पास सदैव रहना चाहता हूँ।
दूर आँखो से ओझल मैं ना होना चाहता हूँ।
चाँद तारों परियों की कहानी सुनाएगी मुझे,
मैं तेरे आँचल से लिपटकर सोना चाहता हूँ।
मैं बच्चा हूँ अभी छोटी बात पर रोना जानता हूँ।
मैं नींदों में कभी हंसना और बोलना जानता हूँ।
सुबह उठकर रोना और परेशान करना जानता हूँ।
मैं बच्चा हूँ अभी माँ बच्चा ही रहना चाहता हूँ।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
नाम:- प्रभात गौर
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश