काज़ल की है कोठरी, बचना कैसे राम |
छोड़ा सब कुछ आप पर, तुम्हीं बचाओ श्याम ||
तुम्हीं बचाओ, तुम्हीं बताओ, मेरे ईश्वर |
सब कुछ अर्पण, दे दो दर्शन,हे जगदीश्वर |
झूठी काया,झूठी माया, झूठे बादल |
नैना वैसे , सजते ऐसे, तू ही काज़ल ||
सजती साजन आज हूँ, लेकर तेरा नाम |
अधरों से हूँ घोलती, जपती रहती श्याम ||
जपती रहती, कहती सहती, आना प्यारे |
दुनियाँ रूठे, रिश्ते टूटे, श्यामा न्यारे ||
नैना काज़ल, जैसे बादल,सखियाँ कहती |
श्याम भजन में, ह्रदय भवन में,मैं हूँ सजती ||
नश्वर काया जानकर,करना सारे कर्म |
रैन बसेरा जीव है,जानो अपने धर्म ||
जानो अपने, सच्चे सपने, दो दिन डेरा |
बैठा उकरू, प्राण पखेरु, क्या है तेरा ||
नश्वर है तन, मानो ए मन,झूठी माया |
जप ले उसको, भज ले उसको,नश्वर काया ||
दर्शन देंगे श्याम जब, नैना लूँगी मूँद |
रहती काज़ल कोठरी,सारा सागर बूँद ||
सारा सागर, गुण के आगर, ईश्वर लीला |
सुंदर मूरत, प्यारी सूरत, तन है नीला ||
प्रीत निभाओ, उर बस जाओ, सब कुछ अर्पण |
हे गिरधारी, महिमा न्यारी, दे दो दर्शन ||
स्नेहिल बन्धन बाँधकर , बनते सारे काम |
संयम सुखमय साधना, सज्जन भजते राम ||
सज्जन भजते, हरपल कहते,खोज बसेरा |
सुंदर काज़ल, देखो बादल, हुआg सबेरा ||
नेक कर्म कर, पुण्य मर्म भर,मिलते प्रेमिल |
मधुरम मोहन, मेरे सोहन,बन्धन स्नेहिल ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश