वर्षा की रुत आई रे,
सावन-सावन धरा पुकारे,
अब मन मत अलसाओं रे।
मन ले चल तू ....
जीवन डगर बड़ी दूभर है,
भोले के संग गाओ रे,
छोड़ दो सारी दुनियादारी,
मंद-मंद मुस्काओ रे।
मन ले चल तू....
यहां-वहां की चिंता छोडो़,
सब संग प्रीत लगाओ रे,
झूम-झूम के बदली बरसे,
मेघ-मल्हार तुम गाओ रे।
मन ले चल तू....
भोले को आमंत्रण देती ,
मोंगर-सी महकाए रे,
धरा रचे सतरंगी सपने,
इन्द्र धनुष शर्माए रे।
मन ले चल तू ...
आओ भोले में रम जाएं,
गीत,भजन हम गाएं रे,
छिटक रही जो प्रेम की बोली,
मधुरस भर-भर जाएं रे।
मन ले चल तू ....
कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम'
गांधीनगर, इन्दौर,(म.प्र.)