पाया यदि उकेरूंगा नहीं इसे तो
ठहर ना पाऐगा, गुमशुदा हो जाएगा !
विचारों का आना जाना टिमटिमाना,
जीवन की बगियां महकती जाती हैं,
कलम धारदार हो गई, कहां शर्माती हैं !
एक लिखा फिर बाचा, बहुत लिख दिया,
अब पढ़ने को जी मचलता हैं, क्या करूं,
मेरे रूकने पर नहीं रुकता, डूबने दूं !
फिर लिख दूंगा चांद-सितारों, रात्री की
नीरवता पर कविताएं, अच्छी लगती हैं,
जीवन की कड़वी बातें, सच्ची लगती हैं!
तन्हाइयों में तरह-तरह के विचार आते हैं,
फिर शब्दों की माला पिरोता सूती धागों में,
लो बन जाती नयी कविता सोचते ख्वाबों में!
- मदन वर्मा " माणिक "
इंदौर, मध्यप्रदेश