मिलन हो या न हो दिल में तेरा होना ही काफ़ी है
जहाँ के अनगिनत लोगों में नाते भी हज़ारों हैं
मगर मेरे लिए तो माँ तेरा रिश्ता ही काफ़ी है
मुहब्बत की तलब मेरी बुझाने को मेरी जाना
जहाँ में बस तेरी आँखों का मश्कीज़ा ही काफ़ी है
ज़रूरत भी नहीं मुझको ज़माने के सहारे की
दिखाने जग को बाबा का मेरे कँधा ही काफ़ी है
मिले मुझको न ये दुनिया न दौलत ओर शुहरत भी
मेरे जीवन में उल्फ़त का तेरी आना ही काफ़ी है
यहाँ क्या खो के जाना है यहाँ क्या पाके है जाना
मिली है उतनी साँसों से गुज़र जाना ही काफ़ी है
प्रज्ञा देवले✍️