ज़िम्मेदारीयों का सैलाब ओढ़कर सोई हुई औरतों के चेहरे पर एक नज़र करो....
"बरसों की थकान भीख मांग रही होती है"
परिवार की जरूरत ठहरी होती है पलकों पर
गहरी नींद में भी दिमाग जगता रहता है सुबह की चहल-पहल की भूल भूलैया से निजात को तरसता...
सोई हुई औरतों के ख़याल तैरते रहते है अवकाश में लहरों की भाँति
शवासन नहीं आता उसे किसी धमधमती फैक्ट्री सा होता है भीतरी दिमाग...
माँ, बहन, बेटी, भाभी, बहू के कितने सारे किरदारों को निभाती सोई हुई औरतें नींद में भी जीती है ये सारे किरदार..
धड़कन सिने को मद्धम आलाप से थपकियाँ देकर सुकून की सेज पर सुलाती जरूर है
पर स्त्री की रूह को चैन की आदत कहाँ, एक हड़बड़ाहट डेरा डालें नखशिख रमती है.....
"हाँ गुनहगार है औरतें खुद की ही"
अपनों की ख़्वाहिशों का महल रचती अपनी ओर लापरवाह जो होती है...
ओ मर्द चुपके से देखना सोई हुई औरत के लबों को गौर से
हल्की हंसी का विश्राम मुस्कुरा रहा होगा तब वह सपने देखती है अपनी आज़ादी के....
बेड़ियां जो ड़ाली गई है पैरों में पाजेब के रुप में
सोई हुई औरत नृत्य करने को बेताब है अबला का उपनाम पौंछकर,
आसमान के उपर दास्तान लिखना चाहती है
तभी तो कश्मकश की एक शिकन झिलमिला रही होती है सोई हुई औरतों के आनन के उपर....
सोई हुई औरत तन्हा है ज़िंदगी के बवंडर से जूझती
सोई हुई औरतों के मर्द थोड़ा झुको, उनके सौम्य माहताब को चूमो
आहिस्ता से अपनी औरत का सर अपनी गोद में रखो भाल पर चुम्बन की मोहर से वादा रखो,
धीरे से उसके कानों में बोलो ए फूलों की मल्लिका "मैं हूँ ना"...
फिर देखो सोई हुई अधजगी औरत के चेहरे पर से थकान को अलविदा कहते सुकून अपना शामियाना सजा लेगा....
हंसी की फ़सल उग आएगी
पलकों पर खुशी ठहर जाएगी और आत्मविश्वास लौट आएगा
वो दुर्गा है, काली है, चंडी है, शक्ति है पर शिव के बिना अधूरी है,
सोई हुई औरत को पूर्णता चाहिए...
औरत से दो कदम आगे नहीं साथ चलो फिर देखो कंटीली राह भी उसे मखमली सेज लगेगी,
सोई हुई स्त्री को जगते ही आज़ादी और अपनेपन की भोर का उपहार दो उस रात वो आराम से सोएगी, सोई हुई औरतों को चैन की नींद चाहिए।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु