हर चीज़ का पर्याय उपलब्ध है, शायद एक गृहिणी का नहीं। बिन घरनी घर भूत का ड़ेरा।
"न गृहं गृह मित्याहु गृहिणी गृह मुच्यते" मतलब सिर्फ चार दीवारों से बनी इमारत घर नहीं कहलाता, गृहिणी से ही घर बनता है। घर की हर चीज़ को बखूबी सहज कर रखने वाली गृहलक्ष्मी से ही घर की शोभा है। घर में हर चीज़ को बखूबी सहज कर रखने में माहिर एक स्त्री की याददाश्त बेजोड़ होती है। सालों पहले रखी चीज़ आँख बंद करके अंधेरे में भी हाथ डालते ही ढूँढ निकालती है। तभी तो घर का हर एक सदस्य घर की प्रमुख महिला पर निर्भर होता है।
सुबह होते ही बड़े बुज़ुर्गों से लेकर बच्चे तक बहू, अरे सुनती हो, मम्मी, भाभी की आवाज़ लगाते रहेंगे। दो हाथ और दो पैर वाली वामा हर मोर्चे पर हाज़िर होकर अपने हुनर को परवाज़ देते सबकी मांग पर चीज़ें परोसते दिनरथ पर सवार होते अपना परचम लहराती है।
एक पैर रसोई में तो दूसरा आँगन में होता है। दो हाथों से एक साथ असंख्य काम निपटाते अपने हर आयुध का बखूबी उपयोग करती है। वाणी, सुजबुझ, कुनेह और मानसिक संतुलन हर नारी के आयुध है। बड़ों की परवाह करते, पति को प्यार देते और बच्चों को ममता के शामियाने तले रक्षती स्त्री घर का आधार स्तम्भ है।
घर में चार दिन गृहिणी की गैरमौजूदगी घर का नक्शा बदल देती है। स्त्री अगर नौकरी करती है तब भी घर और ऑफिस के बीच सामंजस्य बिठाते को बराबर न्याय देती है। बच्चों को पढ़ना, मार्केट से जीवन जरूरत की चीज़े लाना, बुज़ुर्गो की देखभाल करना, खाना बनाना नौकरी देखना। अकेले कंधे पर इन सारे कामों का बोझ ढ़ोते ज़िंदगी की क्षितिज पर चलती रहती है। बहुत कम घरों में मर्द घर काम में पत्नी का हाथ बंटाते पाए जाते है। ज़्यादातर पानी भी खुद अपने हाथ से लेकर नहीं पीते।
हमारे समाज की मानसिकता है की जो काम आर्थिक रूप से ताल्लुक नहीं रखता उसे 'काम' की श्रेणी में नहीं रखा जाता, फ़र्ज़ समझा जाता है। हम अपने घरों में आने वाली कामवाली बाई के काम का मूल्यांकन करते हैं, लेकिन वही काम घर की महिलाएँ करती हैं तो उसे उसका कर्तव्य मानते है, और उसे कोई तवज्जो नहीं देते हैं। गृहिणी को घर का गूगल ही समझो उसको घर की हर छोटी बड़ी बात से लेकर सबकी पसंद नापसंद और सबके दिल का हाल तक पता होता है। गृहिणियों के कार्यों को गरिमा दीजिए, क्योंकि मर्द घर और बाहर के बीच संतुलन साध पाते हैं तो ये गृहिणी के बहुमूल्य योगदान की वजह से संभव है। गृहिणी बिना कोई अपेक्षा के परिवार पर खुशी-खुशी अपनी उम्र वार देती है। हर परिवार गृहलक्ष्मी के बिना अधूरा है।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु